14 मई 2012


पुस्तक "स्त्री होकर सवाल करती है "(बोधि प्रकाशन )
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कवि -गोपी नाथ
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गोपीनाथ ने एक बच्ची के मार्फत अपनी बात कही है !बच्ची बहुत बच्ची है !वह अपने कमरे तक सीमित है जैसे कि एक औरत का दायरा रहता है !बच्ची को अपने छोटे से कमरे के अलावा कुछ भी नहीं मालूम !उसे नहीं मालूम कि फूल ,पत्ते ,झरने ,पहाड़ ,आसमान ,बादल ,बारिश क्या होती है !उसे ये  नहीं मालूम कि खेत ,सड़कें ,मैदान क्या होते हैं !आश्चर्य की बात तो ये है कि उसे ये भी नहीं मालूम कि माँ क्या होती है !शायद उसकी माँ ,उसे जनना ना चाहती हो !मजबूर पैदा की गई बच्ची का गला घोंटने की हिम्मत ना जुटा पाई हो !दादा -दादी पूरी तरह से इस काम में साथ होंगे तब भी !माँ का दिल ना माना होगा !ईश्वर का डर रहा हो शायद !  उस बच्ची को ना तो मौत मिली ,ना ही माँ की मोहब्बत !खैर.... !
बच्ची के ख्वाबों में तितलियाँ आती हैं !तितलियों से गुफ्तगू होती है !वे बच्ची को बाहर निकालने को प्रेरित करती हैं !उसे बताया जाता है कि इस कमरे से बाहर बहुत कुछ है !इस कमरे के बाहर उसकी माँ भी है !इतना सुनते ही वह बच्ची ,माँ की एक तस्वीर मन में बना डालती है !फिर उसे सिर्फ और सिर्फ माँ के ही ख्वाब आते हैं !ख्वाबों की माँ असलियत की माँ लगने  लगती है !एक दिन बच्ची ,तितलियों से अपनी माँ की खबर पूछती है !तितलियाँ उदास हैं ,कुछ नहीं बोलतीं !चुपचाप लौट जाती हैं !बच्ची चीखती है "मुझे बचाओ "!
बच्ची असमंजस में है !माँ भी नहीं मिली ,तितलियाँ भी उदास हैं !इससे अच्छा तो पहले ही ठीक था जब पता नहीं था कि माँ क्या होती है !कम से कम मुस्कुरातीं तितलियाँ तो थीं !ख़्वाब तो थे !ख़्वाब थे तो ख्वाबों के सच होने का भी ख़्वाब था !अब वही कमरा है !वही बच्ची है !ना तितलियाँ हैं ,ना माँ ,ना माँ की तस्वीर !
गोपीनाथ की दूसरी कविता में एक मजबूत औरत है !मर्द लोग जब पेड़ की छांव ढूंढते हैं !तब औरतें छांव के बारे में सोचती भी नहीं !औरतें तो खुद छांव हैं ,फिर छांव को छांव ढूँढने की क्या जरूरत ?ये औरतें किस मिट्टी की बनी हैं !मर्दों को कहती हैं "मेहनत करो ,जी भर के "!जब थकान हो तो आ जाओ  छांव में !आ जाओ आगोश में !रिफ्रेश होकर फिर निकलो काम पर !ये कुदरत का खूबसूरत इनपुट -आउटपुट है !
औरतों की हिम्मत देखिए !जहां मर्द कुदालें ,खाली वापिस लिए आ जाते हैं !औरतें उन्हीं कुदालों से पानी का झरना खोज लेती हैं !ये लोहे की औरतें हैं !ईश्वर से टक्कर लेती औरतें हैं !ईश्वर भी सृजन करता है ,औरत भी !ईश्वर का ह्रदय भी विशाल है ,औरत का भी !भावनात्मक रूप से हारा पुरूष ईश्वर की शरण में जाता है या औरत की !
गोपीनाथ की पहली कविता भावुक कथ्य लिए हुए है !कविता में कोई बनावटी ,ओढ़ी हुई  सतर्कता नहीं है !पाठक को कविता की बच्ची ,अपनी बच्ची लगने  लगती है !कविताएं झरने की तरह हैं जिसके पास पाठक सर पे साफा बांधकर ठंडी हवा ले सकता है ,प्यास लगे तो जल है ही !कविताओं की टेक्नीक को पाठक समझता है और आत्मसात करता है !यही गोपीनाथ की कविताओं का प्लस प्वाईंट  है !
गोपीनाथ की याद रह जाने वाली पंक्तियाँ
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मर्द ढूंढ रहे हैं छांव पेड़ की
चिलचिलाती धूप में खड़ी हैं औरतें
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-सीमांत सोहल
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